भारतीय समाज में जब लिंग की बात की जाती है तो अमूमन स्त्रीलिंग और पुल्लिंग की बात की जाती है। तृतीय लिंग के विषय में कोई बात ही नहीं करना चाहता। कभी बात होती भी है तो हमें निकृष्ट दृष्टि देखा जाता है। हमारे लिए ट्रांसजेंडर, किन्नर, हिजड़ा जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। सदियों पूर्व इस समाज को इज्जत की दृष्टि से देखा जाता था जैसा कि बहुत लोग जानते हैं कि मुगल सम्राज्य के दौरान किन्नर लोग रानियों के हरम में उनकी सुरक्षा के लिए रहते थे। मगर एक समय ऐसा आया जब किन्नरों को अपनी उदरपूर्ति के लिए भीख माँगने पर मजबूर होना पड़ा। इसका मुख्य कारण शिक्षा है। किन्नरों की शिक्षा की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया। जिन किन्नरों ने पढ़ने की कोशिश की भी उनका समाज ने इतना मजाक उड़ाया कि उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी परिणामस्वरूप उनके पास एक ही रास्ता रह गया नाच-गा कर जन्म, शादी-ब्याह के मौको पर बधाई माँगना।ये नेक बधाई माँग कर अपना गुजारा करने लगे। धीरे-धीरेलोगों ने ट्रांसजेंडर लोगों के विषय में बात करनी बंद कर दी। 2014 में जब सरकार ने नालसा जजमेंट पास किया तब यह समाज फिर उभर कर सामने आने लगा। इस सबके बावजूद आज तक समाज यह नहीं जानता कि ट्रांसजेंडर क्या होता है और हिजड़ा क्या होता है?ट्रांसजेंडर एक जटिल शब्द है जिसको समझना थोड़ा मुश्किल है। एक व्यक्ति जिस सेक्स में जन्म लेता है उससे विपरित जब व्यवहार करता है तो वह ट्रांसजेंडर कहलाता है। एक ट्रांस महिला वह होती है जो पुरुष रूप में पैदा होती है लेकिन उसका मस्तिष्क महिला का होता है। वह अपनी पहचान महिला के रूप में स्थापित करना चाहती है। ऐसा व्यक्तित्व महिला ट्रांसजेंडर कहलाता है। ठीक इसी तरह ट्रांस पुरुष वह होता है जो महिला के रूप में पैदा होता है लेकिन पुरुष रूप में पहचाना जाता है। हिजड़ा और ट्रांसजेंडर में अंतर है। हिजड़ा एक परम्परा है जोजन्मोत्स्व, शादी-ब्याह के मौकों पर गा-नाच कर नेग माँगते हैं। वह हिजड़ा कहलाते हैं।इनका जीवन जीने का तरीका ट्रांसजेंडर से अलग होता है। ये लोग डेरे बना कर रहते हैं तथा रोज सुबह अपने घरों से निकल पड़ते हैं ताकि दूसरों के घर की खुशियों में शामिल हो सके। जो पैसा इन्हें मिलता है उससे ये अपना जीवन यापन करते हैं। ट्रांसजेंडर को लेकर लोगों में अनेक भ्रांतियाँ है जिसमें सबसे बड़ी भ्रांति है ट्रांसजेंडर को यौन विकलांग मानना। जबकि जरूरी नहीं कि ट्रांसजेंडर के यौनांग अविकसित हो। ट्रांसजेंडर समुदाय या मनोवैज्ञानिक की माने तो ट्रांसजेंडर होना जननांग विकलांगता होना नहीं है। यह एक अहसास है जो उनके जिंदगी जीने के तरीके को उनके पैदायशी लिंग से अलग बनाता है। हिजड़ा और ट्रांसजेंडर को अक्सर परिवार अपने साथ नहीं रखना चाहता ऐसी स्थिति में उनकी प्राथमिकता शिक्षा से हटकर उदरपूर्ति हो जाती है। एक तो ट्रांसजेंडर या हिजड़ा ऊपर से अधिक पढ़े लिखे भी नहीं होते इसलिए इन्हें सरलता से रोजगार नहीं मिलता।हिजड़ा समुदाय के विषय में लोगों को अनेक भ्रांतियाँ हैं। हमारा भारतीय समाज यह सोचता है कि व्यक्ति जन्म से हिजड़ा पैदा होता है। अगर तकनीकि तौर से देखा जाए तो कोई भी व्यक्ति जब पैदा होता है तो वह केवल बच्चा होता है। जिस तरह एक लड़की स्वयं को लड़की के रूप में देखना पसंद करती है उस तरह जीना चाहती है। ठीक इसी तरह जब बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है और वह अपने जन्म के लिंग के विपरित व्यवहार करता है तो वह ट्रांसजेंडर कहलाता है। हिजड़ा या ट्रांसजेंडर होना फैशन नहीं है। अगर कोई व्यक्ति फिल्मों में या कभी शौकिया तौर पर विपरित लिंग का व्यवहार करता है तो वह ट्रांसजेंडर या हिजड़ा नहीं कहला सकता। रेड लाईट पर हिजड़ों की वेश-भूषा में माँगने वाले कुछव्यक्ति इसी तरह के लोग होते हैंजिन्हेबहुरुपियाकहाजाताहैजो वास्तव में ट्रांस या हिजड़ा नहीं होते बल्कि पैसा कमाने के लिए ऐसा व्यवहार करते हैं। हिजड़ा समुदाय में गुरु-चेले की परम्परा भी होती है। एक हिजड़ा किसी न किसी हिजड़े को अपना गुरु बनाता है तभी उसे हिजड़ा समाज में पहचान मिलती है। गुरु अपने चेले को बच्चे की तरह अपनापन और प्यार देता है तथा हिजड़ा समुदाय में रहना सिखाता है। जबकि ट्रांसजेंडर में ऐसी कोई बंदिश नहीं होती।
साहित्य और समाज में उभरता किन्नर विमर्श
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SKU: 9788194031574 Categories: नालंदा प्रकाशन, Literature
Weight | 200 g |
---|---|
Author's Name | |
Binding | Hardbound |
Pages | 270 |
Size | |
Language | Hindi |
Publisher | Nalanda Prakashan |
Release Year |
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