पुस्तक के बारे में
विषमताओं पर आधारित, कोई भी समाज मानव कल्याण के अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। मानव उत्थान के सर्वोदय हूतु आचार्य विनोबा भावे द्वारा जीवन-पर्यन्त प्रयास किए गये। वे संसाधनों के असमान वितरण से उपजी भारतीय समाज में गरीबी, अज्ञानता, बीमारी, बेकारी और शोषण की प्रतिष्ठाका व्यवहारिक समाधान, हृदय परिवर्तन की लोकनीति पर भूदान एवं ग्रामदान को पवित्र संसाधनों से चाहते थे। प्रेम श्रद्धा एवं सहयोग पर वे सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन से, एक ऐसे लोकतान्त्रिक परिवेश का निर्माण चाहते थे। जो सर्वांगीण कल्याण में मानवीय गुणोें का समावेशी हो। गांधीवादी मूल्यों के सच्चे वाहक रूप में, विनोबा जी ने नैतिक चरित्र के बल पर दल विहीन लोकतान्त्रिक विकेद्रित समाजवादी समाज का प्रयास किया। ऐसे समाज जहाँ धर्मगत, जातिगत, लैगिंक अमीर-गरीब, कमजोर-ताकतवर, बुद्वि जड का प्रभेद शेष न रहे, अपितु सभी के जीवनोपार्जन की व्यवस्था हो विनोबा भावे का सम्पूर्ण दर्शन भारत के जनमानस की चिन्ताओं एवं चुनौतियों के समाधान का वैज्ञानिक ढंग है जिसे अहिंसा की बुनियाद पर सामाजिक क्रांति का भारतीय साम्यवादी संस्करण कह सकते हैं इसके आभाव में हमारा समाज आज भी अपूर्ण हैं। इस पुस्तक में आचार्य विनोबा भावे के सम्पूर्ण दर्शन की प्रासंगिकता को, रेखांकित करते हुए विभिन्न शोधपत्रों के संकलन के माध्यम से न्यायोचित मूल्यांकन का प्रयास किया गया है।
लेखक के बारे में
- लिटरेचर अवार्ड सरस्वती भास्कर सम्मान हरियाणा संस्कृति एकेडमी पंचकुला हरियाणा ।
- यंग फैकल्टी ऐक्सीलेंस अवार्ड, विवेकानंद कॉलेज ऑफ आर्ट्स एड साइंस फॉर वूमैन इंस्टीट्यूट त्रिचुंगोडे नमक्कल तमिलनाडु इन्नोवेशन काउंसिल ऑफ विकास।
Be the first to review “आचार्य विनोबा भावे के दर्शन की आधुनिक भारतीय समाज में प्रासंगिकता Acharya Vinoba Bhave ke Darshan ki Adhunik Bhartiye Samaj me Prasangikta”